कौन हैं 73 साल पहले वाले गोलू जिनसे मिलीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें नाम दिया था- 'बसंत पंडो'...
Basant Pando Full story: कभी मध्य प्रदेश का हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ के सरगुजा में देश का दूसरा राष्ट्रपति भवन सहसा लोगों को चौंका देता है। इस राष्ट्रपति भवन के ईर्द-गिर्द ही कई कहानियां हैं जो देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से जुड़ी हैं। इन्हीं कहानियों के एक किरदार बसंत पंडो भी हैं। देश के पहले राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का ओहदा लिए बसंत देखते-देखते 80 साल के हो गए, जीवन में कुछ खास बदलाव नहीं आया।
73 साल बाद देश की 15वीं राष्ट्रपति का सरगुजा दौरा था। 20 नवंबर को वे अंबिकापुर पहुंची। प्रशासन ने बसंत पंडो को बताया कि राष्ट्रपति इनसे मुलाकात करेंगी। बसंत को देश की दूसरी राष्ट्रपति से मिलने का मौका मिल रहा था। वे काफी एक्साइटेड थे, तैयारियां कीं। क्या कहेंगे...क्या बताएंगे और अपनी उस जनजाति के लोगों की कौन सी पीड़ा बताएंगे जिन्हें पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने दत्तक पुत्र बनाया है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिले और सुनाई अपनी कहानी
मुलाकात होगी...नहीं होगी की ऊहापोह के बीच आखिर बसंत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिले. राष्ट्रपति ने उनका कुशल-क्षेम पूछा. उन्हें शॉल भेंट की. बसंत पंडों ने 1952 की उस घटना का स्मरण किया कि कैसे यहां देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद आए थे, तब उन्होंने नाम दिया- 'बसंत पंडो'।
आप हमारे भी पुत्र की तरह हैं- राष्ट्रपति मुर्मू
बसंत पंडो ने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपना दत्तक पुत्र माना था.राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा- आप मेरे भी पुत्र जैसे ही हैं. बसंत पंडो के जीवन में 20 नवंबर 2025 का दिन भी यादगार हो गया. इस मुलाकात के बाद उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है।
क्या है बसंत पंडो की कहानी
ये बात 1952 की है. तब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सरगुजा दौरे पर आए थे. यहां जंगलों के पेड़ों के नीचे झोपड़ी बनाकर रहते थे. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें बुलवाया और सभी से मिले. इसी भीड़ में एक 8 साल का लड़का गोलू था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजेंद्र प्रसाद ने गोलू को गोद में उठा लिया. नाम पूछा और उसे नया नाम 'बसंत पंडो' दे दिया. गोलू को नया हॉफ पैंट-शर्ट पहनाया गया. उस दिन पंडो समाज के सभी लोगों को नया वस्त्र दिया गया. कहते हैं डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने प्रतीकात्म (कानूनी नहीं) रूप से पूरे पंडो समाज को गोद लिया और बसंत पंडो को भी दत्तक पुत्र माना. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इनके लिए पंडो नगर बसाया. इन्हें जमीनें दिलवाई और रहने-खाने का प्रबंध कराया. उन्होंने कहा कि अब आपलोग किसी की गुलामी मत करना।
पंडोनगर में राष्ट्रपति भवन का क्या है इतिहास?
डॉ. राजेंद्र प्रसाद 22 नवंबर 1952 को सरगुजा दौरे पर आए. तब पंडोनगर में ही उनके ठहरने के इंतजाम के रूप में ये राष्ट्रपति भवन बनाया गया। पंडो समाज के लिए हर साल 3 दिसंबर को इस भवन में आकर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन धूम-धाम से मनाते हैं।
पंडो समाज का इतिहास
पंडो समाज (Pando tribe story) छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल मे रहने वाली एक जनजाति है. ये छत्तीसगढ़ के उत्तरी पहाड़ी और वन क्षेत्र में रहने वाली जनजाति है. ये कभी जंगल-पहाड़ और पारंपरिक जीवनशैली के लिए जाने जाते थे. एक लोककथा ये भी है कि कभी अज्ञातवास के दौरान पांडव इधर से गुजरे थे. ये पांडवों के वंशज कहे जाते हैं, लेकिन इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है. पुराने समय में ये जंगल के उत्पाद, मछली पालन और खेती पर निर्भर थे. ये कबिलाई व्यवस्था में रहते थे। ब्रिटिश काल में जंगल अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गए और इनके जीवनशैली पर इसका प्रभाव पड़ने लगा. अब ये जीवन यापन के लिए दिहाड़ी मजदूरी भी करने लगे। अपने खेत न होने से ये गुलामी जैसी प्रथाओं में जकड़े जाने लगे. अभी भी ये समाज आर्थिक पिछड़ापन का शिकार है।