ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा : मेव मुस्लिम कर रहे है श्रद्धालुओं की सेवा,,,।
मेंवात क्षेत्र में मुस्लिम आबादी बहुसंख्य है। इसके बावजूद मेव मुस्लिम और यहां के रहवासी अल्पसंख्यक हिंदू सदियों से सौहार्द और सद्भाव के साथ रहते आए हैं। नूंह हिंसा के बावजूद मेवात का सामाजिक ताना-बाना कायम है। सामाजिक सौहार्द की एक मिसाल नूंह जिले के बिछोर और नीमका में देखने को मिल रही है, जहां ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा के श्रद्धालुओं के लिए इन मुस्लिम बहुल गांवों के आबाल-वृद्ध न केवल भोजन और प्रवास की व्यवस्था कर रहे हैं, बल्कि उन्हें सुरक्षा भी प्रदान कर रहे हैं।
ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा हिंदू धर्मावलंबियों के लिए विशेष महत्व रखती है। राधे-राधे की गुंजार से पूरा क्षेत्र इन दिनों कृष्ण भक्ति में सरोबार दिख रहा है. यह धार्मिक यात्रा ब्रज के विभिन्न स्थानों से शुरू होकर राजस्थान, मेवात, हरियाणा के कई जिलों और गांवों को परिक्रमा मार्ग में समेटे हुए पुनः मथुरा जनपद में प्रवेश करती है। परिक्रमा मार्ग में कई गांव मुस्लिम बहुल भी हैं. हालिया हिंसा के शिकार हुए नूंह जिले के गांव बिछोर और नीमका भी इसमें शामिल हैं. मुस्लिम बहुल इन गांवों में नूंह हिंसा का रंज तो दिखता है, लेकिन यहां के निवासी इलाके के भाईचारे और इंसानियत के धर्म को सर्वोपरि मानते हुए पारंपरिक ढंग से परिक्रमा में शामिल यात्रियों की सेवा कर रहे हैं।
राधा-कृष्ण की भक्ति एवं प्रेम को समर्पित इस यात्रा में कई प्रांतों के लोग सहभाग करते हैं. यात्रा में बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ, बंगाल, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, पंजाब, दिल्ली, मध्यप्रदेश के श्रद्धालू भाग ले रहे हैं।
इस धार्मिक आयोजन में लाखों परिक्रमार्थी भाग लेते हैं, जो बिछोर और नीमका गांवों से भी गुजरते हैं। इन गांवों के मुस्लिम युवक संघ पुरानी परंपरा के अनुसार इन भक्तों की सेवा करते हैं। पदयात्रियों को मनुहार के साथ गांव का आतिथ्य स्वीकार करने के लिए मनाते हैं. कई स्थानों पर इसके लिए स्वागत पंडाल भी लगे दिखते हैं।
यहां के मुस्लिम भाईयों ने परिक्रमा यात्रियों के लिए यथासंभव जलपान और भोजन का प्रबंध किया हुआ है। भक्तजन यहां भोजन-विश्राम करते हैं, मुस्लिम युवाओं ने भक्तों के लिए अपने घरों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं, जहां वे विश्राम करते हैं। नूंह हिंसा से उलट, यहां हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की अनुपम झांकी देखने को मिलती है. परिक्रमा में शामिल लोगों की किसी भी प्रकार से सेवा-सहायता करना ब्रृज क्षेत्रवासियों के लिए धार्मिक कार्य की तरह है। यहां के हिंदू ग्रामीण भी उनकी सेवा करके स्वयं को बड़भागी मानते हैं।
हालांकि बिछोर में सब शांतिपूर्ण दिखता है, फिर भी नूंह हिंसा के साए से यह क्षेत्र अछूता नहीं हैं। परिक्रमा में शामिल भक्तों को इन गांवों से गुजरते हुए आशंका रहती है कि कहीं उनके साथ कोई शरारत न हो जाए। उधर इन गांवों के मुस्लिम भाईयों में इस बात का खटका रहता है कि उनके गांव में कोई ऐसी घटना न हो जाए, जिससे उनके गांव की बदनामी हो और यहां का भाईचारा बिगड़ जाए।
इसलिए, इस बार विशेष रूप से, मुस्लिम युवाओं के जत्थे इन यात्रियों की सुरक्षा के लिए रात में भी चाक-चौबंद नजर आ रहे हैं। वे मुस्तैदी से रात्रि गश्त कर रहे हैं और उनका समर्पण सराहनीय है। हालांकि प्रशासन ने भी शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अर्द्धसैनिकों को यहां तैनात किया हुआ है।
यहां के निवासी असलम, असगर, मकसूद, सरपंच इम्तियाज और याकूब ने बताया कि नूंह में जो भी घटना हुई, वह अस्वीकार्य है। किंतु यहां के लोग अपने सदियों पुराने भाईचारे को नहीं भूले हैं और उस रिवाज पर कायम हैं। हमारी पूरी कोशिश है कि हम अपने बुजुर्गों की रवायत को कायम रखते हुए परिक्रमा देने वालों की यात्रा आसान बनाएं। उन्होंने नूंह हिंसा से अप्रभावित हुए बिना, सभी क्षेत्रों में शांति बनाए रखने की अपील भी की है।
चहुंओर राधे-राधे
परिक्रमा की छटा भाव-विभोर कर देने वाली होती है, लेकिन सभी यात्री विकट संयम बरतते हुए परकम्मा देते हैं। यात्री परिक्रमा के दौरान नाखून ना काटने, साबुन का इस्तेमाल नहीं करने, चमड़े की बेल्ट नहीं बांधने, चप्पल नहीं पहनने, चारपाई पर नहीं सोने जैसे नियमों की पालन करते हुए और राधे-राधे जपते हुए चलते हैं। बृज यात्रा में हिस्सा लेने से पहले यात्रियों का विधिवत पंजीकरण किया जाता है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं के उपचार के लिए एंबुलेंस भी चलती है और योग्य चिकित्सकों व दवाओं की भी व्यवस्था रहती है।
ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा है वैदिककालीन
वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस परिक्रमा का विवरण मिलता है. ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। वारह पुराण के अनुसार, पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा करीब 268 किलोमीटर मार्ग तय कर करती है। यात्रियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं, पूरी परिक्रमा परिधि में करीब 1300 गांव, कृष्ण-लीलाओं से जुड़े 1100 सरोवर, 36 वन-उपवन और पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।
परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है.
गर्ग संहिता में कहा गया है कि यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से चार धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की, तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं। इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां विराजित हो गए।
84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है, इसके अलावा यहां गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन श्रद्धालुओं को होते हैं। तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबा ने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है। 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि यह परिक्रमा देने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और परिक्रमार्थी को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गर्ग संहिता में कहा गया है कि यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से चार धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की, तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां विराजित हो गए। 84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। इसके अलावा यहां गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन श्रद्धालुओं को होते हैं। तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबा ने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है।
84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है, परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि यह परिक्रमा देने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और परिक्रमार्थी को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।