150 एनकाउंटर करने वाले सुपरकॉप ने वर्दी बदली पर तेवर नहीं, खाकी से खादी पहनते ही आनंद मिश्रा ने जारी किया हेल्पलाइन नंबर...
पटना/बक्सर,ब्यूरो। बिहार चुनाव में एक ओर भाजपा ने 89 सीटें जीतकर नया इतिहास रच दिया, वहीं भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के पूर्व अधिकारी आनंद मिश्रा ने बक्सर विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार संजय कुमार तिवारी को 28,000 से अधिक वोटों से हराते हुए न सिर्फ बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता केवल पुलिस वर्दी तक सीमित नहीं है। असम के 'सिंघम' के नाम से मशहूर पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा ने अपनी जीत के तुरंत बाद जनता से संवाद का अपना पहला वादा पूरा कर दिया है।
उन्होंने हेल्पलाइन नंबर 9288012121 जारी किया, जिसके माध्यम से लोग सीधे अपनी शिकायतें और समस्याएं दर्ज करा सकेंगे। आनंद मिश्रा ने कहा कि फोन व्यस्त होने पर लोग उसी नंबर पर व्हाट्सएप के जरिए भी अपनी बात भेज सकते हैं। उनका कहना है कि यह हेल्पलाइन बक्सर के लोगों की दिक्कतों के त्वरित समाधान के लिए शुरू की गई है और वह व्यक्तिगत रूप से इसकी निगरानी करेंगे। असम के सुपरकॉप अधिकारी रहे आनंद मिश्रा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
'सुपर कॉप' की सियासत में धमाकेदार एंट्री
आनंद मिश्रा की कहानी उनके राजनीतिक करियर से कहीं पहले शुरू होती है। आनंद मिश्रा के पिता का नाम परमहंस मिश्रा है, जबकि माता शांति मिश्रा का निधन पहले ही हो चुका है। पत्नी अर्चना तिवारी भी उनके करियर और सार्वजनिक जीवन में मजबूत सहारा मानी जाती हैं। भोजपुर के शाहपुर प्रखंड के पड़सौरा गांव में 1 जून 1981 को जन्मे मिश्रा की यात्रा हमेशा संघर्ष और काबिलियत से भरी रही है।
कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने 22 साल की उम्र में UPSC पास कर लिया। यह एक ऐसा मुकाम था जिसने उन्हें 2011 बैच का IPS अधिकारी बना दिया। उनकी पहली ही पोस्टिंग से यह साफ हो गया कि वह आम अफसर नहीं हैं। असम-मेघालय कैडर में उग्रवाद से लेकर संगठित अपराध तक आनंद मिश्रा ने जहां भी कदम रखा, वहां अपराधियों के लिए मुश्किलें बढ़ीं। मेघालय के गारो हिल्स में उनके ऑपरेशन इतने प्रभावी रहे कि स्थानीय मीडिया ने उन्हें 'सुपर कॉप' कहना शुरू कर दिया।
उग्रवादियों के खिलाफ सफल ऑपरेशन
असम के लखीमपुर, धुबरी और नगांव में नशीले पदार्थों के खिलाफ उनकी कार्रवाई ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। करीब 150 एनकाउंटरों में शामिल रहना किसी पुलिस करियर को अलग पहचान देता है और आनंद मिश्रा का नाम ठीक उसी मुकाम पर खड़ा है। लेकिन सिर्फ ऑपरेशन ही नहीं उनका अंदाज़ भी लोगों को आकर्षित करता था। बाइक पर लंबी राइड करते हुए, लोगों से संवाद करते हुए, सोशल मीडिया पर अलग अंदाज़ में नजर आने वाले मिश्रा युवाओं के बीच एक ऑफ-बीट हीरो की तरह लोकप्रिय होते चले गए। एक ऐसा पुलिस अधिकारी जो वर्दी में कड़क और मैदान में लोगों का सहज साथी… यह छवि उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी पूंजी बन गई।
वर्दी से खादी तक आनंद मिश्रा का सफर
जनवरी 2024 में आनंद मिश्रा ने IPS की वर्दी उतार दी। यह निर्णय अचानक नहीं था, बल्कि उनकी बढ़ती लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव ने उन्हें राजनीतिक सफर की ओर खींच लिया। लोकसभा चुनाव 2024 में वह बक्सर से निर्दलीय मैदान में उतर गए। जीत तो नहीं मिली, लेकिन 50,000 वोट पाकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि बक्सर उनकी छवि को समझता है और स्वीकार भी करता है। यही प्रदर्शन उनके आगे बढ़ने की पहली सीढ़ी बना। इसके कुछ ही महीनों बाद वह प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी में शामिल हुए, लेकिन अगस्त तक राजनीतिक रुझान और परिस्थितियां उन्हें भाजपा की ओर ले आईं। भाजपा में शामिल होते समय उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह जीवनभर बिहार और पार्टी के लिए काम करेंगे।
बक्सर चुनाव में मिश्रा की 'मैदान मार' जीत
2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन पर दांव लगाया और यह दांव काम कर गया। बक्सर की सीट वर्षों से कांग्रेस के मजबूत हाथों में रही थी। 17 चुनावों में से 10 में कांग्रेस को समर्थन मिला। भाजपा यहां तीन बार ही जीत सकी थी, ऐसे में मिश्रा की जीत सिर्फ सीट भर नहीं, बल्कि एक राजनीतिक बदलाव का संकेत है। बक्सर के मतदाताओं ने इस बार जातीय गणित से ज्यादा प्रशासनिक साख और व्यक्तिगत विश्वसनीयता को तवज्जो दी। आनंद मिश्रा की कड़क छवि, साफ-सुथरी पृष्ठभूमि और युवा मतदाताओं में उनका प्रभाव इस जीत की नींव बना। यह जीत यह भी बताती है कि बिहार में अब 'पुलिस अफसर से नेता' की नई राजनीति भी स्वीकार हो रही है और यह बड़ी तेजी से प्रभाव पैदा करती दिख रही है।
एक सीट से ज्यादा बड़ा बदलाव का संकेत
बक्सर की जीत को सिर्फ एक चुनावी जीत मानना इस कहानी को छोटा कर देना होगा। यह वह क्षण है जहां एक IPS अधिकारी की छवि, एक नेता में बदलने लगी है; जहां एक सीट का गणित बदलकर बिहार की राजनीति के समीकरणों को नया आकार देने लगा है। आनंद मिश्रा की यह जीत बताती है कि बिहार में नए चेहरे, नई ऊर्जा और नई शैली वाली राजनीति की खिड़की खुल चुकी है। अब देखना यह होगा कि यह खिड़की आने वाले वर्षों में कितनी बड़ी बदलाव की राह बनाती है।