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संपादकीय:राम का नाम बना जुर्म, भजन नहीं गा सकते, दीप नहीं जला सकते; इस्लामिक मुल्क न होकर भी क्यों कट्टरपंथ का अड्डा बन रहा भारत?

संपादकीय:राम का नाम बना जुर्म, भजन नहीं गा सकते, दीप नहीं जला सकते; इस्लामिक मुल्क न होकर भी क्यों कट्टरपंथ का अड्डा बन रहा भारत?

 Editorial Indian Politics: मुनीर के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ही शायद सर्वोच्च शक्ति हैं. क्योंकि पूरी दुनिया जानती है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के प्रकोप से बचने के लिए मुनीर ट्रंप के शरण में ही गया था.खुद मुनीर ही दस बार कह चुका है कि ट्रंप ने ही सीजफायर करवाया था, हालांकि भारत ये साफ कर चुका है कि सीजफायर का फैसला पाकिस्तान के गिड़गिड़ाने पर किया गया और इसमें कोई तीसरा पक्ष शामिल नहीं था।

राम का नाम नहीं ले सकते

मुनीर और उसका वैचारिक बंधुआ मजदूर बांग्लादेश को कट्टरपंथ का नया अड्डा बनाने की साजिश रच रहे हैं. ये बांग्लादेश को पाकिस्तान बना रहे हैं. हमारे पड़ोस में हो रही घटनाएं भारत के लिए चिंता की बात है. लेकिन उससे भी चिंता की बात एक और है. भारत में भी इन कट्टरपंथियों ने अपने धार्मिक उन्माद का टापू बना लिया है. इन कट्टरपंथियों ने भारत में ही जगह-जगह बांग्लादेश और पाकिस्तान बना लिये हैं. समझिए उन्माद के इन टापुओं पर धार्मिक असहिष्णुता का मीटर हाई है. ठीक बांग्लादेश औऱ पाकिस्तान की तरह कट्टरपंथियों के इन टापुओं पर सनातन के खिलाफ नफरत का इंडेक्स आसमान पर है. भारत की जमीन पर कट्टरपंथियों के इस वैचारिक गजवा-ए-हिंद में सनातनधर्मी अपने आराध्य का जयघोष नहीं कर सकते हैं. भजन नहीं गा सकते हैं. दीप नहीं जला सकते हैं. ये सबकुछ भारत में हो रहा है।

जय श्रीराम के जयघोष पर पथराव

जय श्रीराम का जयघोष करने पर पथराव ये भारत में ही हुआ है. और जहां पथराव हुआ उस जगह का नाम अलीनगर है. यहां मुसलमानों की आबादी अधिक है. इसलिए यहां पर राम नाम का उद्घोष वर्जित है. इसके लिए जो वहां रहने वाले कट्टरपंथी दलील दे रहे हैं. ये मुस्लिम मोहल्ला क्या होता है? ऐसे ही मुस्लिम मोहल्ला के नाम पर तो कभी पाकिस्तान भी बना था. बंगाल तोड़कर बांग्लादेश भी बना था. मुस्लिम मोहल्ला सिर्फ शब्द नहीं हैं. ये वैचारिक कट्टरपंथ का प्रयोग है. भारत की जमीन पर गजवा-ए-हिंद या कहें तो इस्लामिक राज्य का एक मॉडल है और ये कोई चोरी छिपे नहीं है. खुल्लमखुल्ला है. इन्होंने मुस्लिम मोहल्ला का नाम देकर अपना कट्टरपंथी टापू बना लिया है. जिसमें रामनाम लेने वाले हिंदुओं का प्रवेश निषेध है और जो भी संविधान का नाम लेकर प्रवेश करेगा, उसका हश्र क्या होगा, वो सबके सामने है।

जगह-जगह बिखरे पत्थर

कट्टरपंथियों के इस उन्मादी तांडव के निशान सीहोर में जगह-जगह दिख रहे हैं. सड़कों पर पत्थर बिखरे हुए हैं. गाड़ियों के कांच टूटे हुए हैं. दुकानों में भी तड़ोफोड़ हुई है. ये सिर्फ तोड़फोड़ या टकराव की सामान्य घटना नहीं है. समझिए आज मुस्लिम मोहल्ला बना है तो कट्टरपंथी जय श्रीराम के जयघोष पर पथराव कर रहे हैं. अगर ये किसी राज्य में संख्या में ज्यादा हुए तो क्या होगा. अगर ये भारत में बहुमत में आ गए तो क्या होगा? क्या भारत की वसुधैव कुटुंबकम वाली पहचान सुरक्षित रहेगी. नहीं रहेगी. ये भारत को भी बांग्लादेश और पाकिस्तान बना देंगे. इसलिए आज कट्टरपंथी नफरत के अखिल भारतीय नफरती नेटवर्क को समझने और उसका विरोध करने की जरूरत है।

कट्टरपंथियों ने किया नारा-ए-तकबीर का उद्घोष

जय श्रीराम का नारा लगानेवालों पर पत्थर बरसा रहे इन अतिवादियों का चेहरा कपड़े से ढंका हुआ है. पथराव करते हुए कट्टरपंथियों ने नारा-ए-तकबीर और अल्लाह हू अकबर उद्घोष भी किया. इस नारे के उद्घोष से ही कट्टरपंथियों ने जता दिया कि उनके लिए ये पथराव नहीं, धर्मयुद्ध था. धर्मयुद्ध यानी काफिरों के खिलाफ युद्ध. इतिहास गवाह है कि नारा-ए-तकबीर और अल्लाह हू अकबर का नारा हर उस कट्टरपंथी ने लगाया है जिसने दूसरे धर्म के निर्दोष लोगों का खून बहाया है, जिसे वो अपना दुश्मन मानता है. यहां दुश्मन कौन हैं. हिंदू हैं. इसलिए अलीनगर की घटना खतरे का अलार्म है. ये घटना चेतवानी देती है कि अब कट्टरपंथी वायरस के प्रसार को रोकने के लिए पुख्ता कदम उठाना होगा. अगर जल्द इसपर एक्शन नहीं हुआ तो देरी हो जाएगी. ये उस राज्य में हुआ है, जहां बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार है. जहां मुस्लिम तुष्टीकरण की जगह नहीं है, वहां भी हिंदुओं पर पत्थर चल रहे हैं. अब पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त एक्शन की मांग हो रही है. फिलहाल सीहोर को कट्टरपंथ का टापू बनानेवालों की पहचान हो रही है. हालात को कंट्रोल करने के लिए पुलिस मुस्तैद है. वीडियो फुटेज के जरिए हर उस अतिवादी की पहचान की जा रही है जिसके हाथ में पत्थर था. इनके वैचारिक और कानूनी तौर पर शारीरिक मरम्मत की तैयारी हो रही है।

पश्चिम बंगाल को इस्लामिक स्टेट बनाने की कोशिश

मध्य प्रदेश में कट्टरपंथियों ने अपना मोहल्ला बसा लिया है तो पश्चिम बंगाल में कट्टरपंथी पूरे राज्य को इस्लामिक स्टेट बनाने पर उतारू हैं. ऐसा कहने के पीछे बड़ी वजह है. पश्चिम बंगाल की लोकप्रिय गायिका लग्नजिता चक्रवर्ती पर एक उन्मादी कट्टरपंथी ने हमला कर दिया. ये हमला सड़क पर चलते हुए, या अकेले में नहीं हुआ. हमला हुआ संगीत कार्यक्रम के दौरान हजारों की भीड़ के बीच. हमला क्यों हुआ, क्योंकि लग्नजिता चक्रवर्ती कार्यक्रम में मां दुर्गा की अराधना से जुड़ा एक भजन गा रही थीं. मां दुर्गा की आराधना करना एक कट्टरपंथी को इतना अखर गया कि उसने सरेआम हमला कर दिया. हमला करनेवाले का नाम महबूब मलिक है. कट्टरपंथियों ने खाने-पीने के सामान को पहले ही हलाल और गैर हलाल में वर्गीकृत कर रखा है. अब उन्होंने संगीत को भी धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष की कैटेगरी में बांट दिया है. दादरा, ठुमरी, क्लासिकल, सेमी क्लासिकल ये तो हम सबने कई बार सुना है, लेकिन सेक्युलर गीत यकीनन आपने भी पहली बार सुना होगा।

भजन गाने पर हमला

भजन गाने पर हमला पश्चिम बंगाल में हुआ है, बांग्लादेश में नहीं. उस पश्चिम बंगाल में जहां एक कट्टरपंथी को 'नई बाबरी' के नाम पर मनमानी की छूट मिली है. जहां नई बाबरी के नाम पर हर शुक्रवार को कट्टरपंथियों को शक्ति-प्रदर्शन की अबाध छूट है. उसी पश्चिम बंगाल में जागो मां गाने से रोका जाता है. जिस बंगाल की पहचान मां दुर्गा से होती है उसी पश्चिम बंगाल में मां की अराधना का भजन गाने पर हमला हो जाता है. इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या बांग्लादेश वाला कट्टरपंथी उन्माद पश्चिम बंगाल तक फैल गया है. लग्नजिता चक्रवर्ती पर हमला करने की कोशिश करनेवाला महबूब मलिक टीएमसी से जुड़ा है. आरोप लग रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में TMC के सरंक्षण में कट्टरपंथी मनमानी कर रहे हैं. हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है. यही तो बांग्लादेश में भी हो रहा है. और सिर्फ इतना ही नहीं हो रहा है।

सनातन को मिटाने की साजिश?

जैसे बांग्लादेश में सनातन के चिन्ह मिटाने की साजिश हो रही है, वैसा ही कुछ पश्चिम बंगाल में हो रही है. जॉयनगर के राधाकृष्ण मंदिर में मूर्तियों को खंडित कर दिया गया. अपने आराध्य की प्रतिमा खंडित किए जाने से आहत सनातनधर्मी जब विरोध करने उतरे तो उनकी आवाज को दबाने की कोशिश हुई.बांग्लादेश में कट्टरपंथियों का बहुमत है इसलिए वहां सबकुछ खुलेआम हो रहा है. पश्चिम बंगाल में भी हो वही रहा है लेकिन उपद्रव के वेग की मात्रा यहां बांग्लादेश के मुकाबले थोड़ी कम है. क्योंकि यहां कट्टरपंथी अभी पूर्ण बहुमत की अवस्था में नहीं आए हैं. सवाल फिर वही है अगर कट्टरपंथी बहुमत में आ गए तो क्या होगा. हिंदुओं को भजन गाने की अनुमति नहीं होगी, मंदिर नहीं होंगे. पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश का सांस्कृतिक जुड़ाव पुराना है. लेकिन कट्टरपंथी विचारधारा का ये जो नया जुड़ाव दिख रहा है वो भारत के लिए खतरनाक है. जैसे बांग्लादेश को कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट बनाने के लिए उपद्रव कर रहे हैं. वैसे ही उपद्रव पश्चिम बंगाल में भी हो रहा है. पश्चिम बंगाल में भी अतिवादियों ने कट्टरपंथ का वैचारिक टापू बना लिया है. ऐसा नहीं है कि पश्चिम बंगाल की सरकार कट्टरपंथियों के इस उपद्रव से वाकिफ नहीं है. सरकार को इसकी पूरी जानकारी है, लेकिन तुष्टीकरण के आगे कानून मौन हो जाता है. पुलिस खामोश हो जाती है. और कट्टरपंथियों को उपद्रव की पूरी छूट मिल जाती है।

तुष्टीकरण की राजनीति कर रहीं ममता बनर्जी

तुष्टीकरण ऐसा हथियार है जिसका इस्तेमाल कश्मीर से कन्याकुमारी तक राजनीतिक दल अपनी सुविधा के हिसाब से करते हैं. एकमुश्त वोट की गारंटी के लिए नेताओं को तुष्टीकरण ही सबसे अचूक अस्त्र दिखता है. पश्चिम बंगाल में कट्टपंथियों के तुष्टीकरण का जो काम ममता बनर्जी कर रही है वहीं तमिलनाडु में स्टालिन कर रहे हैं. तुष्टीकरण का ये विवाद दक्षिण की अयोध्या से जुड़ा है. तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने मदुरै पहाड़ी पर हजरत सिकंदर शाह की दरगाह पर ध्वजारोहण की इजाजत दे दी. 13 लोग मदुरै पहाड़ी पर सिकंदर शाह की दरगाह पर झंडा फहराने गए थे. दरगाह में इस्लामिक ध्वज फहराने के लिए तर्क दिया गया कि ये पुरानी परंपरा है. इसलिए इसकी इजाजत दी जाती है. 6 जनवरी 2026 तक यहां इस्लामिक उत्सव की इजाजत भी दी गई है।

मदुरै पहाड़ी का विवाद

जिस मदुरै पहाड़ी पर इस्लामिक झंडा फहराने की इजाजत दी गई है उसी पहाड़ी पर सनातनधर्मियों को कार्तिगई दीपम की अनुमति नहीं दी गई. हाईकोर्ट ने दक्षिण की अयोध्या में हिंदुओं को दीपस्तंभ पर दीप जलाने की इजाजत दी थी, लेकिन स्टालिन सरकार ने हाईकोर्ट का आदेश नहीं माना. उन्होंने कहा कि इससे शांति को खतरा है. मतलब दरगाह में इस्लामिक झंडा फहराना परंपरा है, लेकिन हिंदुओं के दीप जलाने से शांति को खतरा है. ये तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है. ये सनातन आस्था का अपमान है. जिस 'दीप स्तम्भ' को लेकर स्टालिन सरकार कट्टरपंथियों का तुष्टीकरण कर रही है, वो हिंदू धर्म में विजय और युद्ध के देवता माने जाने वाले भगवान मुरुगन के 6 पवित्र आवास में से एक है. इसलिए इसे दक्षिण की अयोध्या भी कहते हैं. पहाड़ी की तलहटी में भगवान मुरुगन एक भव्य मंदिर है. पहाड़ी के ऊपरी हिस्से में सिकंदर बादशाह दरगाह है. पहाड़ी पर एक प्राचीन पत्थर का स्तंभ दीपथून यानी दीप स्तम्भ है, जो सिकंदर बादशाह दरगाह के पास है. यहीं भगवान मुरुगन के भक्त दीप जलाना चाहते थे।

झंडा फहराने की दी इजाजत लेकिन दीप जलाने नहीं दिया गया

कार्तिगई दीपम तमिलनाडु का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो भगवान मुरुगन को समर्पित प्रकाश पर्व है. जैसे उत्तर भारत में दीपावली मनाई जाती है ठीक वैसे ही तमिलनाडु में कार्तिगई दीपम बनाया जाता है. यह तमिल महीने कार्तिगई की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसमें दीपक जलाए जाते हैं. ऐसे पवित्र अस्था स्थल तक हिंदुओं को जाने से रोका गया, लेकिन परंपरा के नाम पर यहां इस्लामिक ध्वज फहराने की इजाजत दे दी गई. सोचिए अगर परंपरा को ही तर्क माना जाए तो दावा हजारों साल पुराने हिंदू धर्म के आस्तिकों का बनता है या 19 सौ साल पुराने इस्लाम माननेवालों का. साफ है यहां आधार परंपरा नहीं, तुष्टीकरण है।


* क्या अलीनगर में जय श्री राम के नारे पर पथराव भारत में कट्टरपंथ का प्रतीक है?
* क्या पश्चिम बंगाल में लग्नजिता चक्रवर्ती पर हमला बांग्लादेशी कट्टरपंथ का विस्तार है?
* क्या तमिलनाडु में स्टालिन सरकार का मदुरै पहाड़ी पर तुष्टीकरण सनातन आस्था का अपमान है?
* क्या बांग्लादेश में दीपू चंद्र दास की हत्या कट्टरपंथियों का नया पैटर्न है?

चीफ एडिटर :: ए.के. केसरी (वरिष्ठ पत्रकार)।