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महाकुंभ 2026 :: 71 साल में पहली बार पांटून पुल भगवा रंग में, संगम किनारे दिखेगा गजब का नजारा...

महाकुंभ 2026 :: 71 साल में पहली बार पांटून पुल भगवा रंग में, संगम किनारे दिखेगा गजब का नजारा...

प्रयागराज में 2026 के महाकुंभ की तैयारियां इस बार इतिहास रचने की ओर बढ़ रही हैं। 1954 से लगातार महाकुंभ, अर्धकुंभ और हर वर्ष आयोजित होने वाले माघ मेले ने संगम की धरती को विश्व पटल पर एक अलग पहचान दी है। लेकिन इस बार एक ऐसा दृश्य दिखने जा रहा है, जो 71 वर्षों के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया पांटून (पीपी) पुल पहली बार भगवा रंग में नजर आएंगे।

अब तक ये पुल पारंपरिक रूप से काले रंग में रंगे जाते थे, लेकिन 2026 के दिव्य और भव्य महाकुंभ को ध्यान में रखते हुए इस बार इनका रंग बदल दिया गया है। इस बदलाव ने राजनीतिक हलचल भी तेज कर दी है।

संगम की रेती पर फिर होगा विशाल आध्यात्मिक आयोजन

जानकारी के अनुसार, 3 जनवरी 2026 से प्रयागराज की रेती पर शुरू हो रहा महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक व धार्मिक मेला माना जाता है। पौष पूर्णिमा से लेकर 15 फरवरी महाशिवरात्रि तक चलने वाले इस आयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। इस बार प्रशासन ने अनुमान लगाया है कि 12 से 15 करोड़ से अधिक लोग माघ मेला और महाकुंभ में शामिल हो सकते हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हालिया दौरे के बाद तैयारियों में तेजी आई है। मेला क्षेत्र में तंबुओं का शहर बसाने के लिए बड़ी मात्रा में लेवलिंग का काम चल रहा है। इसके साथ ही बिजली व्यवस्था, पेयजल आपूर्ति, सीवरेज और चकर्ड प्लेट बिछाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी तेज रफ्तार में हो रहे हैं।

माघ मेले का दायरा बढ़कर होगा 800 हेक्टेयर

इस बार माघ मेले का दायरा बढ़ाकर 800 हेक्टेयर तक कर दिया गया है, जो पहले की तुलना में काफी बड़ा है। अधिक भीड़ को संभालने के लिए 6 नहीं, बल्कि 7 पांटून ब्रिज बनाए जा रहे हैं। सबसे बड़ी चर्चा इन पुलों के रंग को लेकर है पहली बार पांटून ब्रिजों को भगवा (केसरिया) रंग से रंगा जा रहा है। इसी को लेकर सियासत भी गर्म है। विरोधी दल इस बदलाव पर सवाल उठा रहे हैं, जबकि प्रशासन का कहना है कि यह केवल भव्यता और एकरूपता को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय है।

71 साल में पहली बार ऐसा बदलाव

1954 से महाकुंभ की परंपरा चली आ रही है, लेकिन इतने लंबे इतिहास में पुलों का रंग कभी नहीं बदला गया था। 2026 में होने वाला यह बदलाव न सिर्फ तैयारियों की भव्यता को दर्शाता है, बल्कि मेले को एक नई सांस्कृतिक पहचान देने का प्रयास भी दिखाता है। 2026 का महाकुंभ कई मायनों में ऐतिहासिक होने जा रहा है। चाहे वह मेले का बढ़ा दायरा हो, करोड़ों श्रद्धालुओं की तैयारी हो या फिर भगवा रंग से सजे नए पांटून पुल हो।