कौन हैं DSP संतोष पटेल, जिनको सफाईकर्मी ने दिया था खून, तब बची थी जान? 26 साल बाद जान बचाने वाले की बेटी का करेंगे कन्यादान...
DSP Santosh Patel Success Story: कभी-कभी जिंदगी ऐसे मोड़ पर आकर खड़ी हो जाती है, जहां एक पल का फैसला पूरी उम्र की दिशा बदल देता है. उस पल न पहचान मायने रखती है, न पद, न पैसा. उस समय बस इंसानियत बोलती है। भीड़ से अलग खड़ा एक अनजान शख्स, जो बिना कुछ पूछे, बिना कुछ मांगे, किसी और की सांसों को अपनी सांसों से जोड़ देता है। वक्त बीत जाता है, चेहरे धुंधले पड़ जाते हैं, लेकिन उस एहसान की गर्माहट रगों में बहते खून के साथ हमेशा जिंदा रहती है।
यह कहानी उसी एहसान की है, जिसे 26 साल बाद भी भुलाया नहीं जा सका. यह कहानी एक ऐसे बच्चे की है, जिसकी जिंदगी किसी ने अपने खून से लिख दी थी और जो बड़ा होकर जब समाज के लिए जिम्मेदार पद पर पहुंचा, तो सबसे पहले इंसान होने का फर्ज निभाने निकल पड़ा. यही वह मोड़ है, जहां एक अफसर की वर्दी पीछे रह जाती है और सामने आ जाती है एक एहसानमंद इंसान की आत्मा।
गरीबी, संघर्ष और एक झोपड़ी से शुरू हुई कहानी
मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाके में जन्मे संतोष पटेल का बचपन बेहद कठिन परिस्थितियों में बीता. पिता खेतों में मजदूरी करते थे और कभी-कभी राजमिस्त्री का काम कर परिवार चलाते थे. मां घर और बच्चों की जिम्मेदारी संभालती थीं. कच्चे घर की टपकती छत, बरसात में भीगती किताबें और रात में लालटेन की रोशनी में पढ़ाई - यही उनकी दुनिया थी।
सरकारी राशन और छोटी सी जमीन की उपज से जैसे-तैसे परिवार का गुजारा होता था. कई बार ऐसा भी हुआ, जब खाने में सिर्फ दलिया या स्कूल के दोस्तों से उधार ली गई रोटियां ही नसीब हुईं. लेकिन इन हालातों ने संतोष का हौसला कभी नहीं तोड़ा।
जब खून पानी बन गया
साल 1999 संतोष पटेल की जिंदगी का सबसे डरावना मोड़ लेकर आया. तब वह सिर्फ 8 से 9 साल के थे. एक गंभीर बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया. शरीर का खून पानी बनकर मवाद में बदलने लगा. हालात इतने बिगड़ गए कि परिवार झाड़-फूंक और देसी इलाज में करीब छह महीने गंवा बैठा।
जब स्थिति काबू से बाहर हो गई, तो पहले पन्ना जिला अस्पताल और फिर सतना के एक प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टरों ने साफ कहा, ऑपरेशन जरूरी है और तुरंत खून चाहिए. उस दौर में रक्तदान को लेकर समाज में डर था. कोई डोनर सामने नहीं आ रहा था।
एक डांट, एक दोस्ती और फिर मिला जीवनदान
उसी दौरान अस्पताल में एक छोटा सा वाकया जिंदगी बदल देने वाला साबित हुआ. संतोष के पिता गलती से अस्पताल परिसर में थूक बैठे. यह देखकर वहां काम करने वाला एक सफाईकर्मी गुस्से में आ गया और उन्हें डांटने लगा. बात बढ़ी, फिर बातचीत में बदल गई और धीरे-धीरे दोस्ती हो गई।
जब संतोष की हालत बेहद नाजुक हो गई और पिता मायूस होकर बैठे थे, तभी वही सफाईकर्मी, जिसका नाम संतु मास्टर था, उन्होंने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "तुम्हारा बेटा जिंदा रहेगा". बिना किसी लालच, बिना किसी पहचान के संतु मास्टर ने अपना खून दे दिया. उसी खून से ऑपरेशन सफल हुआ और संतोष पटेल को नया जीवन मिला।
पढ़ाई, मेहनत और अफसर बनने का सफर
बीमारी ने परिवार पर आर्थिक बोझ और बढ़ा दिया, लेकिन संतोष का इरादा और मजबूत हो गया. पढ़ाई ही उन्हें इस अंधेरे से बाहर निकाल सकती थी. कठिन हालातों के बावजूद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और जिले के टॉपर बने।
कुछ समय के लिए आर्थिक मजबूरियों ने उन्हें काम की ओर मोड़ा, लेकिन सपनों ने हार नहीं मानी. खुद की मेहनत और सेल्फ स्टडी के दम पर उन्होंने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की परीक्षा पास की और पुलिस सेवा में चयनित हुए।
DSP के रूप में उन्होंने ग्वालियर के घाटीगांव सहित कई जगहों पर सेवा दी और समाज से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशीलता के साथ काम किया. शराबबंदी जागरूकता जैसे अभियानों ने उन्हें एक जनप्रिय अधिकारी बनाया।
26 साल बाद शुरू की फरिश्ते की तलाश
अफसर बनने के बाद संतोष पटेल ने जीवन में मदद करने वाले हर व्यक्ति को धन्यवाद दिया, लेकिन संतु मास्टर का एहसान उन्हें चैन से बैठने नहीं देता था. जब वे सतना पहुंचे, तो सबसे पहले उसी प्राइवेट अस्पताल गए, जहां कभी संतु मास्टर काम करते थे।
वहां पता चला कि संतु मास्टर अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनका कोई सहारा नहीं बचा. यह सुनते ही DSP की आंखें भर आईं. तभी एक बुजुर्ग महिला कर्मचारी ने बताया कि संतु की बेटियां झुग्गी बस्ती में रहती हैं।
जान बचाने वाले की बेटी का करेंगे कन्यादान!
पता मिलते ही संतोष पटेल झुग्गी बस्ती पहुंचे. वहां संतु मास्टर की दो बेटियों से मुलाकात हुई. एक वर्दीधारी अफसर जमीन पर झुककर उनकी बेटियों के पैर छू रहा था. यह दृश्य हर किसी को झकझोर देने वाला था।
DSP ने भावुक होकर कहा, "मैं संतु मास्टर का चेहरा नहीं देख पाया, लेकिन उनका खून मेरी रगों में दौड़ रहा है". उन्होंने परिवार को भरोसा दिलाया कि वे अकेले नहीं हैं. संतोष पटेल ने छोटी बेटी की शादी कराने और समय आया तो खुद कन्यादान करने का संकल्प भी लिया।