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राहुल गांधी के 'दोस्त' छोड़ रहे साथ, EVM और वोट चोरी पर उमर अब्दुल्ला के बाद सुप्रिया सुले ने भी काटी कन्नी, कहा इसी EVM से सांसद हुई..

राहुल गांधी के 'दोस्त' छोड़ रहे साथ, EVM और वोट चोरी पर उमर अब्दुल्ला के बाद सुप्रिया सुले ने भी काटी कन्नी, कहा इसी EVM से सांसद हुई..

नई दिल्ली/श्रीनगर। विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस लगातार 'वोट चोरी' और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में गड़बड़ी का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है. लेकिन, अब 'इंडिया' गठबंधन के भीतर से ही कांग्रेस के इस नैरेटिव को गहरा धक्का लगा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) की सांसद सुप्रिया सुले के हालिया बयानों ने कांग्रेस को इस मुद्दे पर अलग-थलग कर दिया है. इन दोनों प्रमुख सहयोगियों का रुख कांग्रेस की विचारधाराओं से अलग है।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस द्वारा उठाए गए 'वोट चोरी' के मुद्दे से सोमवार को खुद को अलग कर लिया और कहा कि विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' का इससे कोई लेना-देना नहीं है. कांग्रेस द्वारा उठाए जा रहे 'वोट चोरी' और कथित चुनावी अनियमितताओं के मुद्दे पर टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर अब्दुल्ला ने कहा, "इंडिया गठबंधन का इससे कोई लेना-देना नहीं है. हर राजनीतिक दल को अपना एजेंडा तय करने की स्वतंत्रता है. कांग्रेस ने 'वोट चोरी' और एसआईआर (मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण) को अपना मुख्य मुद्दा बनाया है। 

हम उन्हें कुछ कहने वाले कौन होते हैं?"

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने कहा है कि वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सवाल नहीं उठाएंगी, क्योंकि इन्हीं मशीनों से वह चार बार सांसद चुनी गई हैं। सुप्रिया सुले की पार्टी राकांपा (शप), विपक्षी गठबंधन 'महाराष्ट्र विकास आघाडी' का हिस्सा है, जिसमें कांग्रेस और शिवसेना (उबाठा) भी शामिल हैं।

महाराष्ट्र के बारामती से चार बार की लोकसभा सदस्य और राकांपा (शप) की कार्यकारी अध्यक्ष सुले ने लोकसभा में चुनाव सुधारों पर हो रही बहस के दौरान यह बात कही. सुले ने सदन में कहा, "मैं इसी मशीन से चुनकर आई हूं, इसलिए मैं ईवीएम या वीवीपैट पर सवाल नहीं उठाऊंगी." उन्होंने कहा, "मैं मशीन के खिलाफ बात नहीं कर रही हूं. मैं एक बहुत सीमित बात रख रही हूं और भारतीय जनता पार्टी से मुझे बड़ी अपेक्षाएं हैं, जिसे महाराष्ट्र में इतना बड़ा जनादेश मिला है।"

कांग्रेस के लिए झटका क्यों?

नैरेटिव का कमजोर होना: कांग्रेस और राहुल गांधी पिछले लंबे समय से यह नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा ईवीएम में हेराफेरी करके चुनाव जीत रही है. जब गठबंधन के प्रमुख घटक दल (NCP-SP) और नेशनल कॉन्फ्रेंस इस थ्योरी से किनारा कर लेता है, तो जनता के बीच कांग्रेस का दावा 'हार की हताशा' जैसा लगने लगता है।

गठबंधन में विरोधाभास: उमर अब्दुल्ला और सुप्रिया सुले के बयान ने विपक्षी एकता में दरार दिखा दी है. भाजपा अब आसानी से कह सकती है कि जब कांग्रेस के सहयोगी ही ईवीएम पर भरोसा करते हैं, तो कांग्रेस को भी अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए. इससे संसद से लेकर सड़क तक कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन कमजोर पड़ता है।

आत्ममंथन की नसीहत: उमर अब्दुल्ला और सुप्रिया सुले का रुख इशारों में यह संदेश देता है कि विपक्ष को मशीनों से लड़ने के बजाय जमीन पर अपनी पकड़ मजबूत करने की जरूरत है. यह कांग्रेस नेतृत्व के लिए एक अप्रत्यक्ष नसीहत है कि वे तकनीकी खामियां ढूंढने के बजाय संगठनात्मक कमजोरियों को दूर करें।

विश्वसनीयता पर सवाल: जब गठबंधन के ही साथी EVM पर कांग्रेस के सुर में सुर नहीं मिलाते, तो जनता के बीच यह संदेश जाता है कि कांग्रेस हार को पचा नहीं पा रही है और केवल बहाने बना रही है.

भाजपा को मिला हथियार: उमर और सुप्रिया के बयानों ने भाजपा को बैठे-बिठाए मुद्दा दे दिया है. भाजपा अब आसानी से कह रही है कि जब राहुल गांधी के सहयोगी ही EVM पर भरोसा जता रहे हैं, तो कांग्रेस देश को गुमराह क्यों कर रही है?

कानूनी लड़ाई कमजोर: कांग्रेस चुनाव आयोग और कोर्ट में EVM के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है. लेकिन राजनीतिक रूप से जब उसके अपने साथी (जो खुद चुनाव लड़कर आए हैं) इस थ्योरी को खारिज कर देते हैं, तो कांग्रेस का पक्ष नैतिक रूप से कमजोर पड़ जाता है।

विपक्ष में बिखराव: यह मामला दिखाता है कि 'इंडिया' गठबंधन में राष्ट्रीय मुद्दों पर एकराय नहीं है. एक तरफ कांग्रेस 'संविधान और लोकतंत्र खतरे में है' का नारा देकर EVM को विलेन बताती है, वहीं दूसरी तरफ उसके साथी जमीनी हकीकत स्वीकार कर रहे हैं।

निश्चित तौर पर उमर अब्दुल्ला और सुप्रिया सुले का बयान कांग्रेस के लिए इसलिए बड़ा झटका है क्योंकि यह उनसे उनका सबसे बड़ा 'बचाव का हथियार' छीन लेता है. अगर विपक्ष के भीतर ही ईवीएम पर एक राय नहीं है, तो चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के सामने उनकी दलीलें बेअसर साबित होंगी. कांग्रेस को अब यह तय करना होगा कि वह ईवीएम के मुद्दे पर अकेले आगे बढ़ेगी या अपने सहयोगियों की सलाह मानकर आत्ममंथन की राह चुनेगी।